जगदलपुर
प्राचीन समय में उपयोग किए जाने वाले वस्तुओं को संग्रहित करने का बीड़ा स्कूली बच्चों ने उठाया है ।और उनके इस कार्य को सहयोग प्रदान किया पालकों ने उन्होंने बच्चों को पूर्वजों के जमाने में घरों में उपयोग करने की सामग्री खेती किसानी के औजार सहित बस्तर वनांचल क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली विलुप्त सामग्रियों को सहेजने की जिम्मेदारी दी है और बच्चे उसे बखूबी निभा रहे हैं। जिला मुख्यालय जगदलपुर से महज 35 किलोमीटर दूरी पर स्थित लामकेर संकुल में स्थति प्राथमिक शाला डेंगगुडा पारा झारतरई के पालकों अपने स्कूल के बच्चों को अपने दैनिक जीवन में पूर्वजों के द्वारा उपयोग किए जाने वाली सामग्रियों को सहेजने की जिम्मेदारी दी है। ग्राम के सभी बालकों ने अपने-अपने घरों से बच्चों को वह सामग्रियां उपलब्ध कराई जिसका वह घर पर उपयोग करते थे देखते ही देखते 47 प्रकार की सामग्रियों को संग्रहण कर एक संग्रहालय का निर्माण किया है।
*क्या क्या सामग्री रखी गई है संग्रहालय में*
संग्रहालय में रुई बड़गी, तोसर, कोड़ा, हल, लगडा, पीढ़ा, तुमा, ढूटी, सोढिया, खपरा सांचा, फार, धान भूनने का चम्मच, मुशल, कावड़, सलप, सोडिया टाटी, बैल घंटी, चूल्हा, बेट, बैल नाथ, रेंदा, सीका, सूप, टूकनी, चोलन, कोंडी, पतरी, ककवा, चिमनी, कुसला, सूत आटना, लामन दिया, दही मथनी, मुठला, टार्च, आहरा, परला, लावा जाल, चम्मच, टांगा, गेड़ी, कुश आदि 47 प्रकार की सामग्रियां रखी गई है।
*रुई बढ़गी, तोसर, ढेरा, कोड़ा बना आकर्षण का केंद्र*
संग्रहालय में 47 प्रकार की सामग्रियों को रखा गया है ।और उन सामग्रियों के आगे उनका नाम भी लिखा गया है ।जो आज के नवयुवक हैं ,वह भी आकर इस संग्रहालय में उन सामग्रियों को देख रहे हैं जो उनके पूर्वज उपयोग करते थे ।आज के आधुनिक युग में जहां लोग ट्रैक्टर से खेती का कार्य करते हैं ।लेकिन पुराने समय में जब यह सब सामग्रियां नहीं होती थी। तो कितनी विषम परिस्थितियों में लोग कार्य किया करते थे। इन बातों को भी संग्रहालय में लोगों को समझाया जा रहा है।
रुई बढ़गी, तोसर, ढेरा, कोड़ा आकर्षण का केंद्र केंद्र बना हुआ है। रुई बढ़गी से दही मथना,तोसर का उपयोग कपड़ा बुनने के लिए। ढेरा का उपयोग रस्सी आंटने के लिए कोड़ा का उपयोग जानवर हांकने के लिए किया जाता है। इन सामग्रियों को लोग कौतूहल से देख रहे हैं।
संग्रहालय का शुभारंभ ग्राम के वरिष्ठ नागरिक झड़गू के द्वारा किया गया। उनके द्वारा उपस्थित सभी लोगो को प्रत्येक सामग्री के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। इस अवसर पर संकुल प्राचार्य चरण कश्यप, संकुल समन्वयक धर्मेंद्र अग्रवाणी, संतोष अग्रवाणी, शिक्षक झरना अग्रवाणी , नेहा कश्यप, नजीर खान, देव कुमार नाग, प्रदीप पटेल, उमा राज, गौरी पोर्ते, संध्या वर्मा, ओम प्रकाश ध्रुव, किरण साहू, मंजुला दास, पालक एवम ग्रामीण बलराम, जयराम, खेमराज, बलदेव, रामकुमार, राम प्रसाद, सुलधर, झगडू राम, अंतू राम, लखमू, कमलबती, खीरो, मंगली, मिटकी, कवसिला, पार्वती,गीता, सुकरी,ललिता,सुको, समबती, नीलो, बसंती, रतन,समदू, मदनी, अमीषा, मूनी,भगवती, एलसी, संतोष, सुमनी आदि उपस्थित थे।
*कार्य प्रशसनीय*
बस्तर क्षेत्र अपनी संस्कृति सभ्यता को लेकर जाना जाता है। आज के समय में अपनी संस्कृति को सहेजने का जो कार्य डेंगगुड़ा के स्कूली बच्चों ने उठाया है। वह प्रशंसनीय है।