कोंडागांव41 मिनट पहले
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कोंडागांव में मछली मेला का आयोजन हुआ।
छत्तीसगढ़ के बस्तर में कई परंपराएं सदियों से चली आ रही है। उनमें से एक ऐतिहासिक बंधा मतऊर मेला की परंपरा है। 14 साल के बाद कोंडागांव में इस मेला का आयोजन हुआ है। खास बात यह है कि, इस मेला में न तो झूले हैं, न ही दुकानें। बल्कि तालाब से सामूहिक मछली पकड़ने की परंपरा है। गांव वालों ने अपने रिश्तेदारों को बुलाया और साथ मिलकर यह परंपरा निभाई। 40 गांव के करीब ढाई हजार लोगों ने साथ मिलकर मछली पकड़ी और इस ऐतिहासिक परंपरा को निभाया है।
दरअसल, जिले के बरकई गांव के ग्राम पटेल जीवनलाल पांडेय ने बताया कि, इस परंपरा में गाजा-बाजा के साथ पूजा अर्चना कर ग्राम प्रमुख मालगुजार रामप्रसाद पांडेय को सभी ग्रामीणों मिलकर ससम्मान के साथ तालाब स्थल में ले गए। मालगुजार रामप्रसाद ने विधिवत पूजा की, फिर सभी लोगों को तालाब में मछली पकड़ने की अनुमति दी गई। मान्यता है कि, जब तक मालगुजार की तरफ से आदेश नहीं दिया जाता तब तक कोई भी व्यक्ति तालाब में मछली नहीं पकड़ सकता। लगभग 1 से डेढ़ घंटे तक माता को प्रसन्न करने बाजा बजाया गया।
2500 ग्रामीणों ने एक साथ पकड़ी मछली।
सभी लोग तालाब में मछली पकड़ने के लिए कई प्रकार के जाल का उपयोग किए। लगभग डेढ़ घंटे तक उत्सव चला। जिसके बाद फिर से मालगुजार के आदेश पर मछली पकड़ना बंद कर दिया गया। ग्रामीणों का मानना हैं कि इस पर्व में सीमित समय तक लोगों को तालाब में बड़ी संख्या में छोटी-बड़ी मछली मिलती है। मालगुजार के मना करने के बाद अगर कोई व्यक्ति तालाब में मछली पकड़ने जाता है तो वह मछली नहीं पकड़ पाता है।
ड्रोन से ली गई तस्वीर।
2500 जाल लेकर उतरे ग्रामीण
इस साल लगभग 2500 जाल लेकर 30 से 40 गांव के ग्रामीण बड़ी संख्या में एकत्रित हुए थे और सभी लोगों ने अपने-अपने जाल से तालाब में मछली पकड़ी। इस डेढ़ घंटे में एक जाल से कम से कम 4 से 5 किलो और अधिक से अधिक 10 किलो तक मछली पकड़ी गयी। इस दौरान ग्राम बरकई के ग्राम प्रधान मालगुजार रामप्रसाद पांडेय, ग्राम पुजारी ललित मरकाम, ग्राम सरपंच बलिराम मरकाम, चमराराम बघेल, दिलीप पांडेय, लालाराम पांडेय सहित बड़ी संख्या में ग्राम बरकई के ग्रामीण सहित आस-पास के गांव से आए हुए ग्रामीण मौजूद रहे।
14 साल के बाद आयोजन हुआ है।
14 साल बाद हुआ आयोजन
यह बंधा मतऊर मेला का आयोजन अंतिम बार 2008 में किया गया था। शासन ने तालाब को लीज में दे दिया गया था। जिसके चलते 14 सालों तक इस परंपरा का निर्वहन नहीं हो पाया था। इस साल ग्राम बरकई में बैठक कर शीतला माता मंदिर में माता शीतला के आदेश पर पुनः इस परंपरा को 14 साल बाद प्रारंभ किया गया। इस तालाब की लीज की राशि बकाया होने के चलते मेंटेनेंस के रूप में इस वर्ष मछली पकड़ने आए ग्रामीणों से प्रति जाल पर 30 से लेकर 50 रुपए सहयोग राशि भी ली गई।