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बस्तर में आदिवासी एक ऐसा त्योहार मनाते हैं जो लगभग डेढ़ महीने तक चलती है

By on Jan 23, 2025 in केशकाल, जगदलपुर, दंतेवाड़ा, दंतेवाड़ा, बस्तर

जगदलपुर -05-08-2023

इतने दिनों तक मनाए जाने वाली त्योहार पूरे देश में शायद ही कहीं मनाई जाती है, बस्तर के आदिवासी इसत्योहार को दियारीत्योहार कहते हैं और इसत्योहार में सैकड़ों साल पुरानी परंपराओं को आज भी यहां के आदिवासियों द्वारा बखूबी निभाया जाता है


दरअसल छत्तीसगढ़ के बस्तर में धान कटाई से इस त्योहार की शुरुआत होती है, जब धान पूरी तरह से पककर तैयार हो जाता है तो इसकी खुशी में आदिवासी और यहां के रहने वाले किसान दियारी कात्योहार मनाते हैं, वर्तमान में भी बस्तर के ग्रामीण अंचलों में दियारीत्योहार की रौनक देखने को मिल रही है, बताया जाता है कि नये धान की फसल घर तक पहुंचने के बाद परंपरा अनुसार अलग-अलग गांवों में इस तिहार को मनाया जाता है.
वहीं आदिवासियों द्वारा ही गांव-गांव में मनाई जाने वाली मंडई मेले औरत्योहार भी खास तरह की होती है. बस्तर में आदिवासी एक ऐसा हीत्योहार मनाते हैं जो लगभग डेढ़ महीने तक चलती है और हर गांव में अलग-अलग दिनों में मनाई जाती है, खास बात यह होती है कि दिवाली से शुरू होने वाली आदिवासियों की यह त्योहार जनवरी के आखिरी दिनों तक चलती है.
गांव के ग्रामीण अपने गांव की कुल देवी और घर की कुल देवी की पूजा अर्चना कर गांव की खुशहाली की कामना करते हैं, वही कोठार में बांस के सुपे में धान रखकर पूजा की जाती है, इसके अलावा अपने अपने पालतू मवेशियों को नहला धुलाकर खिचड़ी खिलाई जाती है और उनकी पूजा की परंपरा करीब डेढ़ महीने तक चलती है.
सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष और जानकर प्रकाश ठाकुर ने बताया कि बस्तर में महालक्ष्मी पूजा को स्थानीय आदिवासी राजा दियारी कहते हैं, बस्तर के ग्रामीण अंचलो में आदिवासियों के अलावा ट्राइबल में ही कई अन्य जाति के लोग धान कटाई के बाद इस दियारीत्योहार को मनाते हैं, उन्होंने बताया कि गांव के सिरहा, पुजारी और पटेल के सहमति पर सप्ताह के किस दिन इस पर्व को मनाना है यह तय किया जाता है, और उसके बाद पूरे गांव में दियारी कात्योहार मनाया जाता है.

Vishal Thakur

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