जगदलपुर
दशहरा पर्व का महत्वपूर्ण विधान जोगी बिठाई की रस्म देर शाम सिरहासार भवन में पूरी की गई… लगभग छह सौ वर्षो से चली आ रही परम्परा के अनुसार बड़े आमाबाल गांव के दौलत नाग को विधि-विधान से मावली देवी की पूजा-अर्चना के बाद सिरहासार भवन पहुंचाया गया… इसके बाद जोगी नौ दिनों के तप के लिए बनाए गए दो बाई दो गड्ढे में बैठे गए…बस्तर के ग्राम बड़े आमाबाल के जोगी परिवार के वशंज जोगी के रूप में नौ दिनों तक बैठते हैं. सिरासार भवन में मांझी-चालकी व पुजारी की मौजूदगी में जोगी को नए वस्त्र पहनाने के बाद गाजे-बाजे के साथ कपड़ों के पर्दे की आड़ में सिरासार के पास स्थित मावली माता मंदिर ले जाया गया…पुजारी के प्रार्थना उपरांत जोगी नौ दिनों तक साधना का संकल्प लेकर गड़ढे में बैठाया गया..मान्यता है कि जोगी के तप से देवी प्रसन्न होती हैं और दशहरा पर्व निर्विघ्न संपन्न होता है. जोगी बिठाई की रस्म 6 सौ से भी अधिक वर्षों से एक ही परिवार निभाता आ रहा है…नवरात्र की शुरुआत के साथ ही मां दन्तेश्वरी के प्रथम पुजारी के रूप में जोगी 9 दिनों तक एक ही जगह बैठकर कठिन व्रत रखते है.दरअसल, देवी की उपासना बस्तर राजा को करनी होती थी ताकि यहां खुशहाली रहे लेकिन 9 दिनों तक राजा की जगह उसके प्रतिनिधि के तौर पर जोगी को देवी की उपासना के लिए बैठाया जाता है और आज भी ये परंपरा जारी है …जिससे दशहरे का पर्व शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो सके।